Mahabharat
Sabha Parva
मयदानवनी मित्रता
संसारमां केटलाक मानव एवा छे जे बीजाए
पहोंचाडेला नाना मोटा लाभने जीवनपर्यंत याद
राखे छे, बीजाए करेला सामान्य
अथवा असामान्य उपकारनुं सदा स्मरण करे छे.
एने माटे पोताने ऋणी समजे छे, अने
एनो बदलो वाळवा माटे तैयार रहीने
बदलो वाळवानो एक पण अवसर नथी चूकता.
एथी ऊलटुं, केटलाक मानवो एवा पण होय छे. जे
बीजाए पहोंचाडेला नाना-मोटा लाभने के
करेला सामान्य अथवा असामान्य उपकार
पोतानी व्यकितगत सगवड प्रमाणे
सहेलाईथी भूली शके छे, भूली जाय छे. अने
एथी आगळ वधीने भलुं करनारानुं बूरुं करवा माटे
सदा तैयार रहे छे, एने माटेनो एक पण अवसर
चूकतां नथी.
संतपुरुषो तथा शास्त्रो पहेला प्रकारना पुरुषोने
सज्जन कहे छे ने बीजाने दुर्जन. एकने
कृतज्ञी कहीने ओळखावे छे. अने बीजाने
कृतघ्नी तरीके.
मयदानव सज्जन अथवा कृतज्ञ होवाथी अर्जुने
आपेला जीवनदानने ना भूली शकयो. ए
अर्जुनना अने कृष्णना उपकारने याद करीने
एमनो एकनिष्ठ ममताळु मित्र बनी रह्यो अने
एमना प्रत्युपकार माटेना स्वप्नांने
सेववा लाग्यो.
एणे अर्जुनने पूछयुं पण खरुं के, तमे मने कोपायमान
कृष्णथी तथा भयंकर
अग्निज्वाळामांथी बचाव्यो छे. तो हुं तमारुं शुं
प्रिय करुं? हुं दानवोनो अतिनिपुण
विश्वकर्मा होवाथी तमारे माटे कोई प्रिय अने
उत्तम कार्य करवानो मनोरथ सेवुं छुं.
अर्जुने एने श्रीकृष्णनी प्रार्थना करवानो आदेश
आप्यो.
एणे करेली प्रार्थनाने अनुलक्षीने कृष्णे एने
युधिष्ठिरने माटे सौने आश्चर्यचकित करनारी,
अननुकरणीय, अलौकिक, सभानुं निर्माण
करवानी सूचना करी.
ए सूचनाथी मयदानवने परम संतोष तथा हर्ष थयो.
कृष्णे ते पछी द्वारका पहोंचवा माटे प्रस्थान
कर्युं.
ते पछी विजयीश्रेष्ठ अर्जुनने मयदानवे कह्युं के तमे
रजा आपो तो हुं हमणां विदाय लउं.
कैलासनी उत्तरे मैनाक पर्वत छे. त्यां पूर्वे
दानवो यज्ञ करता हता. त्यारे में बिन्दु सरोवर
आगळ एक विचित्र अने रम्य मणिमय संग्रहपात्र
बनाव्युं हतुं ते सत्यवचनी वृषपर्वानी सभामां हतुं.
ते जो हजु सुधी त्यां हशे तो तेने लइ ने हुं
पाछो आवीश. पछी यश वधारनारी, मनने आनंद
आपनारी, अने सर्वरत्नोथी विभूषित
थयेली विचित्र सभा हुं पांडवोने माटे बनावीश.
बिन्दु सरोवर उपर एक भयंकर गदा पण छे. मने लागे
छे. के राजा वृषपर्वाए रणमां रिपुओने रगदोळीने
तेने त्यां दाटी राखी छे. ते
गदा सुवर्णबिन्दुओथी विचित्र देखाववाळी,
मोटी, भारे भार सहेनारी, मजबूत, एक लाख
गदाओनी बराबरी करनारी, अने शत्रुओनो नाश
करनारी छे. ते गदा भीमने माटे योग्य छे.
वळी त्यां सुदर घोषवाळो वरुणनो देवदत्त नामे
महाशंख छे. ए बधुं हुं तमने लावी आपीश.
अर्जुनने आ प्रमाणे कही ने असुरे उत्तर
दिशा तरफ प्रयाण कर्युं.
थोडोक वखत वीत्या पछी एणे ए
सघळी साधनसामग्री साथे
ईन्द्रप्रस्थमां पुनः प्रवेश कर्यो. एणे भीमने श्रेष्ठ
गदा आपी अने अर्जुनने उत्तम देवदत्त शंख
आप्यो. एनी मित्रता पांडवने माटे एवी रीते
महामूल्यवान थइ पडी.